मिरे नसीब ने जब मुझ से इंतिक़ाम लिया कहाँ कहाँ तिरी यादों ने हाथ थाम लिया फ़ज़ा की आँख भर आई हवा का रंग उड़ा सुकूत-ए-शाम ने चुपके से तेरा नाम लिया वो मैं नहीं था कि इक हर्फ़ भी न कह पाया वो बेबसी थी कि जिस ने तिरा सलाम लिया हर इक ख़ुशी ने तिरे ग़म की आबरू रख ली हर इक ख़ुशी से तिरे ग़म ने इंतिक़ाम लिया वो मअरका था कि फ़तह ओ शिकस्त भी न मिली न जाने 'शाज़' ने किस मस्लहत से काम लिया