मिरे वजूद में पैवस्त ग़म के तीरों को ख़ुदा बनाए रखे हाथ की लकीरों को ख़ुद अपने घर में नहीं आज इस्मतें महफ़ूज़ नगर के बीच भी ख़तरा है राहगीरों को लहू दिया है चलो आज दिल भी दे आएँ दिलों की सख़्त ज़रूरत है कुछ अमीरों को हुनर न देख सकी कोई आँख भी लेकिन हमारे ऐब नज़र आए बे-बसीरों को ख़ुलूस चाहिए 'अंजुम' तो झोंपड़ों में चलो महल से भीक मिली है कभी फ़क़ीरों को