मिरी अफ़्सुर्दा-दिली गर्दिश-ए-अय्याम से है लोग कहते हैं मोहब्बत किसी गुलफ़ाम से है चश्म-ए-साक़ी ने भी ये मशवरा-ए-नेक दिया कि इलाज-ए-ग़म-ए-दिल तल्ख़ी-ए-बद-नाम से है चाँदनी-रात में ये और चमक उट्ठेगा दर्द कुछ दिल में सिवा आज सर-ए-शाम से है रंग उड़ाया है ज़माने ने जहाँ से 'मसऊद' अपनी निस्बत भी उसी यार-ए-गुल-अंदाम से है