मिरी बस्ती में जितनी लड़कियाँ हैं ख़ुदा का शुक्र पर्दे वालियाँ हैं मैं इंसाँ हूँ फ़रिश्ता तो नहीं हूँ सो मुझ में भी यक़ीनन ख़ामियाँ हैं तुम्हारे बिन मेरी हालत है ऐसी बिना पानी के जैसी कश्तियाँ हैं चलें सोचें ज़रा इस मसअले पर हमारे दरमियाँ क्यों दूरियाँ हैं मैं ख़ुद को क्यों भला समझूँगा तन्हा मिरी हमदम मिरी तन्हाइयाँ हैं कभी लोगों के चेहरे भी पढ़ा कर रक़म चेहरों पे भी सच्चाइयाँ हैं हमारे अपने भी हैं अजनबी से हमारी जब से ख़ाली झोलियाँ हैं हमारे देस में मेआ'र-ए-इज़्ज़त नहीं इंसानियत बस कुर्सियाँ हैं मरी वाले भी आते हैं यहाँ पर कि बल्तिस्ताँ में ऐसी वादियाँ हैं ख़यानत मत करो ख़ाक-ए-वतन से कि तेरे तन पे ख़ाकी वर्दियाँ हैं छपी है इन में ज़ालिम की तबाही लब-ए-मज़लूम पर जो सिसकियाँ हैं इसे कहते हैं फूलों से मोहब्बत हमेशा गुल्सिताँ में तितलियाँ हैं न घूरो राह चलती लड़कियों को तुम्हारे घर में भी तो बेटियाँ हैं वो जिन को देख कर रब याद आए जहाँ में ऐसी भी कुछ हस्तियाँ हैं उठा लाए तो हो तुम सीपियों को मुज़य्यन मोतियों से सीपियाँ हैं न घबराना ऐ 'नूरी' मुश्किलों से कि मुश्किल में छुपी आसानियाँ हैं