मिरी ग़ज़ल में थीं उस की नज़ाकतें सारी उसी के रू-ए-हसीं की सबाहतें सारी वो बोलता था तो हर इक था गोश-बर-आवाज़ वो चुप हुआ तो हैं बहरी समाअतें सारी वो क्या गया कि हर इक शख़्स रह गया तन्हा उसी के दम से थीं बाहम रिफाक़तें सारी डुबो गया वो मिरा लफ़्ज़ लफ़्ज़ दरिया में वो ग़र्क़ कर गया मेरी अलामतें सारी वो एक लम्हा सर-ए-दार जो चमक उट्ठा उस एक लम्हे पे क़ुर्बान साअतें सारी जहाँ पे दफ़्न है उस के बदन का ताज-महल उधर दरीचे रखेंगी इमारतें सारी