मिरी ज़ात का हयूला तिरी ज़ात की इकाई कोई हम-सफ़र है मेरा कि है तेरी ख़ुद-नुमाई मैं हूँ पुर-सुकूँ अज़ल से मैं हूँ पुर-सुकूँ अबद तक मगर आँख कह रही है नहीं तुझ से आश्नाई मैं तो लुट चुका ज़माने! मिरे पास क्या रहा है मिरे होंट सिल चुके हैं मैं भला दूँ क्या दुहाई ये फ़रार का है लम्हा कि क़रार की है सूरत तिरी चाँद सी जबीं पर नहीं दाग़-ए-बेवफ़ाई यही उम्र भर का दुख है यही ज़िंदगी का सुख है न कोई फ़रेब-ए-हस्ती न शुऊर-ए-दिल-रुबाई मैं तो कल भी था सफ़र में मैं हूँ आज भी सफ़र में वही दौर मेरी मंज़िल वही मेरी जग-हँसाई मैं 'ज़ुहैर' सोचता हूँ कभी ज़ख़्म नोचता हूँ जाने कब नसीब जागे मिले फ़िक्र से रिहाई