मिरी ज़मीं तिरे अफ़्लाक से ज़ियादा है मुझे ये ख़ाक हर इक ख़ाक से ज़ियादा है निगार-ख़ाना-ए-दुनिया मुझे दरीदा लिबास तिरी अता-शुदा पोशाक से ज़ियादा है शिकस्ता जिस्म अलग चीज़ है मगर तिरा ज़ुल्म कहाँ मिरे दिल-ए-बे-बाक से ज़ियादा है कहानी-कार तुझे क्या ख़बर ये शहर दुखी तिरे फ़साना-ए-ग़म-नाक से ज़ियादा है मैं बुझ रहा हूँ मगर मेरी रौशनी 'शहज़ाद' चराग़-ए-खेमा-ए-इदराक से ज़ियादा है