मिरी ख़ुशबू मिरे असरार तुझ में मैं शामिल हूँ जमाल-ए-यार तुझ में मसीहाई को जिस की इश्क़ आया कोई ऐसा पड़ा बीमार तुझ में गुबार-ए-ज़ात बैठेगा कोई दम गिरी है आख़िरी दीवार तुझ में फुसून-ए-शब भी है क़ुर्बान जिस पर सुख़न ऐसा हुआ बेदार तुझ में हवा-ए-तुंद है जलते दिए हैं अज़ल से बरसर-ए-पैकार तुझ में तुझे है आरज़ू दुनिया की लेकिन कोई दुनिया से है बेज़ार तुझ में मिलन के गीत गाती है अज़ल से मिरी पाज़ेब की झंकार तुझ में मैं हूँ वो शब्द जो मादूम होता अगर पाता नहीं इज़हार तुझ में इज़ाफ़ी हैं मुझे ये दीन-ओ-दुनिया मिरे दोनों जहाँ दिलदार तुझ में