मिरी तरफ़ से निगाहें तो वो हटा लेगा वो अपने ज़ेहन से कैसे मुझे निकालेगा लबों पे फूल मोहब्बत के जो सजा लेगा उसे हरीफ़ भी बढ़ कर गले लगा लेगा गुनहगार न बन उस को बद-दुआ' दे कर ग़ुरूर उस का उसे ख़ुद ही मार डालेगा हर एक आग को वो रौशनी समझता है मैं चूक जाऊँ तो वो उँगलियाँ जला लेगा बहुत सँभाल के रक्खा है आँसुओ तुम को मिरी तरह तुम्हें आँखों में कौन पालेगा अगर जुनून की हद से गुज़र गया दरिया तो अपने साथ वो 'साहिल' को भी बहा लेगा