उस ने आने का जो व'अदा क्या जाते जाते दम मिरा सीने में रुकने लगा आते जाते ख़ाक में मुझ को जो तुम ने न मिलाया न सही लाश ही मेरी ठिकाने से लगाते जाते तेरे दीवानों का देखे तो कोई जोश-ओ-ख़रोश सू-ए-महशर भी हैं इक शोर मचाते जाते हम तो समझे थे कि नालों से तसल्ली होगी ये तो हैं दर्द में दर्द और बढ़ाते जाते साथ लेना था हमें भी तुझे ओ पैक-ए-सबा हम भी हम-राह तिरे ठोकरें खाते जाते तुम ने कांधा न दिया लाश को मेरी न सही एक ठोकर ही मिरी जान लगाते जाते यूँ न जाना था उन्हें पास से उठ कर 'अंजुम' कोई आफ़त ही मिरे सर पे वो ढाते जाते