मिसाल अपनी बड़ी बे-नज़ीर रखता हूँ मैं अपने आप को ख़ुद का असीर रखता हूँ यूँ अपने आप को लोगो हक़ीर रखता हूँ ख़ुदा गवाह कि रौशन ज़मीर रखता हूँ उन्हें यक़ीन है मेरी कमाँ में रहते हैं अचूक इल्म के तरकश में तीर रखता हूँ मैं ज़ाहिरा में हूँ हर चंद मुफ़लिस-ओ-नादार दिल-ओ-निगाह को लेकिन असीर रखता हूँ न जाने कौन सी मंज़िल पे मौत आ जाए ख़ुदा ही जाने कहाँ का ख़मीर रखता हूँ दिल-ओ-दिमाग़ से करता हूँ फ़ैसले अपने मैं अपने अज़्म को 'महमूद' मीर रखता हूँ