मिसाल-ए-गर्द मिज़ाज-ए-हयात बरहम है अमल बहुत है मगर मक़्सद-ए-अमल कम है बजा है लज़्ज़त-शेर-ओ-शराब-ओ-नग़्मा-ओ-रंग मगर ये ख़ल्वत-ए-जल्वा-नुमा भी क्या कम है दयार-ए-हुज़्न से आगे है सरज़मीन-ए-नशात हज़ार हैफ़ मगर वुसअत-ए-नज़र कम है दयार-ए-दिल के लिए रास्ते बहुत लेकिन रह-ए-ख़ुलूस से जाओ तो फ़ासला कम है उड़ा उड़ा सा है रंग-ए-रुख़-ए-ज़माना 'क़मर' रग-ए-हयात में इख़्लास का लहू कम है