मिसाल-ए-दस्त-ए-ज़ुलेख़ा तपाक चाहता है ये दिल भी दामन-ए-यूसुफ़ है चाक चाहता है दुआएँ दो मिरे क़ातिल को तुम कि शहर का शहर उसी के हाथ से होना हलाक चाहता है फ़साना-गो भी करे क्या कि हर कोई सर-ए-बज़्म मआल-ए-क़िस्सा-ए-दिल दर्दनाक चाहता है इधर उधर से कई आ रही हैं आवाज़ें और उस का ध्यान बहुत इंहिमाक चाहता है ज़रा सी गर्द-ए-हवस दिल पे लाज़मी है 'फ़राज़' वो इश्क़ क्या है जो दामन को पाक चाहता है