मिसाल-ए-संग खड़ा है उसी हसीं की तरह मकाँ की शक्ल भी देखो दिल-ए-मकीं की तरह मुलाएमत है अँधेरे में उस की साँसों से दमक रही हैं वो आँखें हरे नगीं की तरह नवाह-ए-क़र्या है सुनसान शाम-ए-सर्मा में किसी क़दीम ज़माने की सर-ज़मीं की तरह ज़मीन दूर से तारा दिखाई देती है रुका है उस पे क़मर चश्म-ए-सैर-बींं की तरह फ़रेब देती है वुसअ'त नज़र की उफ़ुक़ों पर है कोई चीज़ वहाँ सेहर-ए-नीलमीं की तरह 'मुनीर' अहद है अब आख़िर-ए-मसाफ़त का कि चल रही है हवा बाद-ए-वापसीं की तरह