मिशअल-ब-कफ़ कभी तो कभी दिल-ब-दस्त था मैं सैल-ए-तीरगी में तजल्ली-परस्त था हर इक कमंद अरसा-ए-आफ़ाक़ ही पे थी लेकिन बुलंद जितना हुआ उतना पस्त था थी हौसले की बात ज़माने में ज़िंदगी क़दमों का फ़ासला भी यहाँ एक जस्त था बिखरे हुए थे लोग ख़ुद अपने वजूद में इंसाँ की ज़िंदगी का अजब बंदोबस्त था मरने के बाद अज़्मत ओ शोहरत से फ़ाएदा लेकिन जहाँ तमाम ही मुर्दा-परस्त था सरमाया-ए-हयात थे कुछ नक़्द-ए-दाग़-ए-दिल सच बात तो है ये कि बहुत तंग-दस्त था अर्ज़-ए-नियाज़-ए-शौक़ से था बे-नियाज़ दिल मुल्क-ए-हवस में 'अश्क' अकेला ही मस्त था