मिस्ल-ए-ख़ुशबू हर अंजुमन में रहे फूल की तरह हम चमन में रहे दिन निकलते ही रोज़ रन में रहे अपने ही घर में हम कफ़न में रहे साज़िशों से वो बाज़ आए नहीं हम उसूलों की बस घुटन में रहे याद कुछ तो रहे तुझे हम भी तेरे माथे की हर शिकन में रहे रंग-ए-दुनिया में खो गए तुम तो हम उसी सादा पैरहन में रहे हो गए हम लहूलुहान मगर हौसले दिल के हर थकन में रहे अब की तहज़ीब ही निराली है शहद होंटों पे ज़हर मन में रहे कितने चालाक हैं वो और 'हकीम' हम कि बेबाक भोले-पन में रहे