मिस्ल-ए-बाद-ए-सबा तेरे कूचे में ऐ जान-ए-जाँ आए हैं चंद साअत रहेंगे चले जाएँगे सर-गराँ आए हैं शाम-ए-आज़ुर्दगी के सताए हुए चोट खाए हुए मेहरबाँ हो के मिल हम बहुत आज ना-शादमाँ आए हैं इश्क़ करना जो सीखा तो दुनिया बरतने का फ़न आ गया कारोबार-ए-जुनूँ आ गया है तो कार-ए-जहाँ आए हैं ज़ख़्म खुलने लगे फिर उभरने लगीं दिल की महरूमियाँ याद फिर तेरे अंदाज़-ए-दिलदारी-ए-जिस्म-ओ-जाँ आए हैं दास्तान-ए-शब-ए-हिज्र उन को सुनाने का दिन ये नहीं महफ़िल-ए-इश्क़ में आज ही तो वो कुछ मेहरबाँ आए हैं