मोहब्बत आप अपनी तर्जुमाँ है यही ख़ुद चश्म ओ दिल लफ़्ज़ ओ बयाँ है निगाहों में बहार-ए-जावेदाँ है जहाँ मैं हूँ वहीं अब आशियाँ है मोहब्बत दोनों जानिब मेहरबाँ है कि हम उस से वो हम से बद-गुमाँ है वो कब से मुज़्तरिब हैं ऐ ग़म-ए-इश्क़ ख़ुदा जाने तेरी ग़ैरत कहाँ है हमारी रिफ़अ'तों का पूछना क्या जहाँ हम पाँव रख दें आसमाँ है कोई आवाज़ ही दे गुम-शुदा दिल कहाँ है ओ मिरे यूसुफ़ कहाँ है अगर तू है तो ऐ जान-ए-दो-आलम यहाँ हर शय जवाँ जावेदाँ है मज़े सोज़-ए-दरूँ के मिल रहे हैं ब-हम्द-ओ-लिल्लाह कि दिल आतिश-बजाँ है तमाशा दीदनी है देख जाओ ज़बान-ए-शौक़ ओ गुलबाँग फ़ुग़ाँ है मुबारकबाद ऐ जज़्ब-ए-मोहब्बत उन्हें अपने पर अब मेरा गुमाँ है किसी को इक नज़र ही देख तो लें अब इतनी भी हमें जुरअत कहाँ है तिरे नक़्श-ए-क़दम का ज़र्रा ज़र्रा इबादत-गाह-ए-जान-ए-आशिक़ाँ है इलाही ख़ैर करना देर से फिर बहुत मुज़्तर निगाह-ए-राज़दाँ है फुंका जाता है दिल जिस सोज़-ए-ग़म से जहन्नम में ये चिंगारी कहाँ है जो पढ़ सकता है तो पढ़ ऐ ग़म-ए-दिल कि इन नज़रों में आज इक दास्ताँ है