मोहब्बत चाहते हो क्यूँ वफ़ा क्यूँ माँगते हो तुम उन बीमार आँखों से दवा क्यूँ माँगते हो मुसाफ़िर हो तो निकलो पाँव में आँखें लगा कर किसी भी हम-सफ़र से रास्ता क्यूँ माँगते हो उन्हें तो ख़ुद ही अपनी जान के लाले पड़े हैं बेचारे शहर वालों से हवा क्यूँ माँगते हो अभी कुछ था अभी कुछ है बदन आब-ए-रवाँ सा बदन से आज-कल का वाक़िआ क्यूँ माँगते हो हुदूद-ए-ख़ाक से बाहर नहीं आ पाएगा हुस्न वो जितना है उसे उस से सिवा क्यूँ माँगते हो हुजूम-ए-शहर में से तीर से निकले चले जाओ हुजूम-ए-शहर से उस की रज़ा क्यूँ माँगते हो मोहब्बत आप ही अपना सिला है 'फ़रहत-एहसास' मोहब्बत कर रहे हो तो सिला क्यूँ माँगते हो