मोहब्बत दिल पे करती है असर आहिस्ता आहिस्ता मरीज़-ए-ग़म को होती है ख़बर आहिस्ता आहिस्ता ख़ुदा अब जाने क्या अंजाम हो इस सज्दा-रेज़ी का घिसा जाता है तेरा संग-ए-दर आहिस्ता आहिस्ता जुनून-ए-इश्क़ ले आया है आख़िर दश्त-ए-ग़ुर्बत में मुक़द्दर बन गई गर्द-ए-सफ़र आहिस्ता आहिस्ता किया है जुम्बिश-ए-लब ने मुझे बेहाल कुछ ऐसा मैं यूँ तो साँस लेता हूँ मगर आहिस्ता आहिस्ता उभर आएगा अपने वस्ल का ख़ुर्शीद भी इक दिन मगर होगी शब-ए-ग़म मुख़्तसर आहिस्ता आहिस्ता बचाऊँ किस तरह कच्चे मकाँ को तेज़ बारिश में गिरे जाते हैं सब दीवार-ओ-दर आहिस्ता आहिस्ता नहीं मरता यकायक बे-इरादा नाज़नीनों पर छिड़कता हूँ मैं जाँ उन पर मगर आहिस्ता आहिस्ता किसी के दूर रहने से मोहब्बत कम नहीं होती मगर बर्बाद होता है जिगर आहिस्ता आहिस्ता ग़ज़ब है बज़्म में तेरा ये कैफ़-अंगेज़ नज़्ज़ारा हुआ जाता हूँ ख़ुद से बे-ख़बर आहिस्ता आहिस्ता मुझे करने लगा है ख़ानमाँ-बर्बाद ग़म तेरा वतन में हो गया हूँ दर-ब-दर आहिस्ता आहिस्ता उमँड आई है क्यूँ तारीक शब अतराफ़-ए-आलम पर कहाँ गुम हो गए शम्स-ओ-क़मर आहिस्ता आहिस्ता 'मुज़फ़्फ़र' राज़ पोशीदा रहेगा कैसे महफ़िल में लहू टपका रही है चश्म-ए-तर आहिस्ता आहिस्ता