मोहब्बत दुखों की इक दवा है वगर्ना ज़िंदगी हर्फ़-ए-दुआ है अँधेरे का तनासुब बढ़ न जाए कोई सूरज ज़मीं पे आ गिरा है हमारा हाल है अज़हर-मिनश्शम्स जो सब का हाल है किस से छुपा है दर-ए-का'बा पे भी पहरे बिठाओ बुतों की वापसी का मरहला है शिकस्ता-पा सफ़र की सम्त खो कर मुसाफ़िर राह में तन्हा खड़ा है दर आए जिस का जी चाहे दर आए सदा से दिल का दरवाज़ा खुला है मुसलसल आबजू में रहते रहते कँवल का फूल कुछ उक्ता गया है जहाँ सदियों से है प्यासों का मेला 'शमीम' इस बज़्म का शोहरा बड़ा है