मोहब्बत का गुलशन सजाने लगे हैं हम अपनी वफ़ा को निभाने लगे हैं उठी थी जो दीवार नफ़रत की दिल में उसे रफ़्ता रफ़्ता गिराने लगे हैं झुका कर जो नज़रें थे ख़मोश बैठे वही दर्द अपना बताने लगे हैं जिन्हें प्यार के फूल हम ने थे भेजे वही दिल पे ख़ंजर चलाने लगे हैं ख़बर जिन को ऐबों की अपने नहीं है वही मुझ पे तोहमत लगाने लगे हैं उन्हें कह रहा है ज़माना ये जोकर जो रो कर के सब को हँसाने लगे हैं मिले हैं वो जब से 'मुसाफ़िर' न जाने मुझे देख कर मुस्कुराने लगे हैं