मोहब्बत का जहाँ है और मैं हूँ मिरा दारुल-अमाँ है और मैं हूँ हयात-ए-ग़म निशाँ है और मैं हूँ मुसलसल इम्तिहाँ है और मैं हूँ निगाह-ए-शौक़ है और उन के जल्वे शिकस्त-ए-ना-गहाँ है और मैं हूँ उसी का नाम हो शायद मोहब्बत कोई बार-ए-गिराँ है और मैं हूँ मोहब्बत बे-सहारा तो नहीं है मिरा दर्द-ए-निहाँ है और मैं हूँ मोहब्बत के फ़साने अल्लाह अल्लाह ज़माने की ज़बाँ है और मैं हूँ 'क़मर' तक़लीद का क़ाइल नहीं मैं मिरा तर्ज़-ए-बयाँ है और मैं हूँ