मोहब्बत का सफ़र हे और मैं हूँ वो मंज़ूर-ए-नज़र है और मैं हूँ परिंदा बे-रुख़ी का उड़ रहा है वफ़ा का इक शजर है और मैं हूँ क़फ़स में ले चला सय्याद मुझ को ख़याल-ए-बाल-ओ-पर है और मैं हूँ सफ़र आसान कितना हो गया है वो मेरा हम-सफ़र है और मैं हूँ वही आँगन वही मेहराब-ओ-मिम्बर वही दीवार-ओ-दर है और मैं हूँ अब उन का ग़म भी अपना ग़म है 'रिज़वान' उधर का हाल इधर है और मैं हूँ