मोहब्बत कर के लाखों रंज झेले बेकली पाई वो मुझ को क्या मिले इक मौत गोया जीते-जी पाई वो बुलबुल हूँ कि जिस दिन से लुटा है आशियाँ मेरा उठा लाया मैं अपना दिल समझ कर जो कली पाई शिकायत उस की क्या तुझ से ये अपनी अपनी क़िस्मत है कि मेरी आँख को आँसू मिले तू ने हँसी पाई जहाँ में वाक़ई 'मुज़्तर' का भी इक दम ग़नीमत था मगर अफ़्सोस थोड़े दिन जिया कम ज़िंदगी पाई