मोहब्बत मा-सिवा की जिस ने की गोरी कलोटी की यक़ीं कीजो कि काफ़िर हो के अपनी राह खोटी की मोहब्बत मा-सिवा अल्लाह की हर कुफ़्र से बद-तर फ़क़ीरों ने क़नाअ'त तब तो बरसीली लंगोटी की क़नाअ'त का ख़ज़ीना गर किसी के हाथ लग जावे नहीं परवाह रखता है किसी सर्राफ़ सोटी की दिल-ए-क़ाने के तईं नान-ए-जवीं ख़ुश-तर ज़े-तर-हलवा नहीं हो एहतियाज उस को पुलाव गोश्त रोटी की जिगर खाने में अपने फ़ाएदा अज़-बस, तू क्या जाने वो जाने चाशनी चक्खी हो जिस ने दिल की बोटी की तन-ए-लाग़र ब-राह-ए-इश्क़ बेहतर है बचा ला के किया मुज़्ग़े ने क्या हासिल अगरचे शक्ल मोटी की अब इस दुनिया में दुनिया छोड़ कर रहना ही बेहतर है कहानी थी बड़ी लेक 'आफ़रीदी' ने तो छोटी की