मोहब्बत में जीना नई बात है न मरना भी मर कर करामात है मैं रुस्वा-ए-उल्फ़त वो मारूफ़-ए-हुस्न बहम शोहरतों में मुसावात है न शाहिद न मय है न बज़्म-ए-तरब ये ख़मियाज़ा-ए-तर्क-ए-आदात है शब ओ रोज़ फ़ुर्क़त हमारा हर एक अजल का है दिन मौत की रात है उड़ी है मय-ए-मुफ़्त 'साइल' मुदाम कि साक़ी से गहरी मुलाक़ात है