मोहब्बत में कहाँ आसूदगी महसूस होती है ये वो मय है कि पी कर तिश्नगी महसूस होती है भड़क उठते हैं शो'ले सोज़िश-ए-पैहम से सीने में कहीं फिर जा के आँखों में नमी महसूस होती है न हों जब तक फ़रोज़ाँ शमएँ अश्कों की सर-ए-मिज़्गाँ कहाँ ऐ दोस्त दिल में रौशनी महसूस होती है तबीअत ख़ूगर-ए-रंज-ओ-अलम है इस क़दर 'अतहर' कि अब अपनी हँसी भी अजनबी महसूस होती है