मोहब्बत में कमी सी रह गई है कि बस इक बेबसी सी रह गई है न जाने क्यूँ हमारे दरमियाँ अब फ़क़त इक बरहमी सी रह गई है अजब ये सानेहा गुज़रा है हम पर तिरे ग़म की ख़ुशी सी रह गई है समुंदर कितने आँखों में उतारे तो फिर क्यूँ तिश्नगी सी रह गई है नहीं चढ़ता है अब यादों का दरिया मगर इक बेकली सी रह गई है ख़लिश दिल में कोई बाक़ी है अब तक कि आँखों में नमी सी रह गई है वही इक बात जो कहनी थी तुम से वही तो अन-कही सी रह गई है