मोहब्बत में तपाक-ए-ज़ाहिरी से कुछ नहीं होता जहाँ दिल को लगी हो दिल-लगी से कुछ नहीं होता ये है जब्र-ए-मशीयत या मिरी तक़दीर है यारब सहारा जिस का लेता हूँ उसी से कुछ नहीं होता कोई मेरी ख़ता है या तिरी सनअ'त की ख़ामी है फ़रिश्ते कह रहे हैं आदमी से कुछ नहीं होता तिरे अहकाम की दुनिया मिरे आ'माल का महशर यहाँ मेरी वहाँ तेरी ख़ुशी से कुछ नहीं होता रज़ा तेरी लिखा तक़दीर का मेरी ज़ियाँ-कोशी किसी की दोस्ती या दुश्मनी से कुछ नहीं होता