मोहब्बत मिरी रंग लाने लगी है कि उन की नज़र मुस्कुराने लगी है ये छेड़ा है किस ने रबाब-ए-मोहब्बत कि हर साँस कुछ गुनगुनाने लगी है वही ले गए हैं सकूँ ज़िंदगी का जिन्हें हर तमन्ना बुलाने लगी है शब-ए-ग़म मरी बे-क़रारी से थक कर सितारों को भी नींद आने लगी है उन्हें पा के महसूस करता हूँ 'इरफ़ाँ' कि दुनिया मुझे आज़माने लगी है