मोहब्बत मुस्कुराती जा रही है तुम्हारी याद आती जा रही है तुम्हारी मुस्कुराहट यूँ है जैसे सबा ग़ुंचे खिलाती जा रही है तुम्हारी दिल-बराना बेवफ़ाई मिरी हस्ती बनाती जा रही है वो जैसे जैसे खुलते जा रहे हैं बहार आँचल उठाती जा रही है ये कौन आया है दरिया के किनारे फ़ज़ा में लहर आती जा रही है नसीम-ए-सुब्ह से कोई ये कह दे गुलों को क्यों हँसाती जा रही है ज़माना को समझता जा रहा हूँ सऊबत रास आती जा रही है कोई है नोश तिश्ना-लब है शायद घटा आँसू बहाती जा रही है उठी है गर्दिश-ए-दौराँ की मय्यत घटा कांधा लगाती जा रही है बहुत कम-ज़र्फ़ है 'बिस्मिल' ये दुनिया यही आवाज़ आती रही है