मोहब्बत से तरीक़-ए-दोस्ती से चाह से माँगो मिरे साहब किसी से दिल जो माँगो राह से माँगो गए फ़रहाद-ओ-क़ैस उन का नज़ीर इक मैं जहाँ में हूँ अज़ीज़ाँ ख़ैर बाक़ी मानदगाँ अल्लाह से माँगो ख़त उस काफ़िर ने क़त्ल-ए-आम का फ़रमाँ निकाला है मुसलमानो पनाह उस आफ़त-ए-नागाह से माँगो अगर है अज़्म रूम-ओ-ज़ंग की तस्ख़ीर का बारे कुमक तुम अँखड़ियों अपनी की नादिर-शाह से माँगो नुमूद ऐ आशिक़ो गर मा'रके में इश्क़ के चाहो तो माँगो तब्ल नाले से अलम-दार आह से माँगो नज़र सब कुछ पड़े उठ जाए ग़फ़लत का अगर पर्दा जहाँ की दीद की रुख़्सत दिल-ए-आगाह से माँगो मिलूँ मैं यार से फिर आप के धाड़ी है और संदल दुआएँ शैख़ जी पीरों की तुम दरगाह से माँगो दिमाग़ उस का फ़लक पर है अबस ख़जलत-ज़दा होगे मियाँ दिल सुनते हो बोसा न तुम उस माह से माँगो मआल-ए-कार उस का ख़ाक है जुज़ ख़्वारी-ओ-ज़िल्लत अमाँ ऐ दोस्तो दुनिया में हुब्ब-ए-जाह से माँगो सिवा इक माल-ओ-ज़र के जान-ओ-दिल है दीन-ओ-ईमाँ है तुम्हें जो चाहिए इस अपने दौलत-ख़्वाह से माँगो लिए और गुम किए लाखों ही उस ने ये नहीं होता 'मुहिब' दिल दे के फिर उस शोख़-ए-बे-परवाह से माँगो