मोहब्बत तो मोहब्बत ही नहीं थी हक़ीक़त में हक़ीक़त ही नहीं थी मैं उस की चाय की प्याली थी लेकिन उसे पीने की जुरअत ही नहीं थी बिछड़ने का भी इक अपना मज़ा था मगर मुझ में ये हिम्मत ही नहीं थी बुरा मत मानना पर सच यही है तुझे मेरी ज़रूरत ही नहीं थी किसे मैं ढूँढती अपनी ख़ुशी में तुम्हारे ग़म से फ़ुर्सत ही नहीं थी हमें दिल चाहिए था उस को दौलत हमारे पास दौलत ही नहीं थी बिछड़ने का ख़याल आता भी कैसे हमारे बीच क़ुर्बत ही नहीं थी कि हम अनमोल थे कहने की हद तक हमारी क़द्र-ओ-क़ीमत ही नहीं थी ग़ज़ल में जान 'रख़्शाँ' कैसे आती तिरे जज़्बों में शिद्दत ही नहीं थी