मोहब्बतें थीं कुछ ऐसी विसाल हो के रहा वो ख़ुश-ख़याल मिरा हम-ख़याल हो के रहा हर एक पर्दे में दरयाफ़्त उस का हुस्न किया फिर उस ख़ज़ाने से मैं माला-माल हो के रहा लहू की लहर में शादाबियों की शिद्दत से मिज़ाज उस का मिरे हस्ब-ए-हाल हो के रहा करम का सिलसिला जो मुंक़ता था ग़फ़लत से बहाल कैसे न होता बहाल हो के रहा हम इतना चाहते थे एक दूसरे को 'ज़फ़र' मैं उस की और वो मेरी मिसाल हो के रहा