मोहब्बतों के पले कैसे नफ़रतों में ढले ये सोच सोच के हम शहर तेरा छोड़ चले इसी ख़याल से करता नहीं पर-अफ़्शानी मिरे परों की रगड़ से कहीं फ़लक न जले ये कह रही थी हसीना तमाश-बीनों से जो आप लोग हैं अच्छे तो हम बुरे ही भले हयात ओ मौत कहानी है साएबानों की कभी फ़लक के तले हम कभी ज़मीं के तले तिरे फ़िराक़ के सदमे क़ुबूल हैं लेकिन जफ़ा के ब'अद चले तो वफ़ा का दौर चले ये जानशीन-ए-क़मर मेरी दस्तरस में नहीं दिए की मौज है बुझ कर जले जले न जले अजब तरीक़ से उतरा विसाल का लम्हा पड़े हैं जान के लाले लगा के उस को गले