दयार-ए-इश्क़ में वाइ'ज़ ख़िरद का काम नहीं उधर न भूल के जाना वो राह-ए-आम नहीं वो सुब्ह सुब्ह नहीं है वो शाम शाम नहीं कि जिस में उन की तरफ़ से कोई पयाम नहीं वो राह-रौ हूँ कि मंज़िल नहीं क़याम नहीं तलाश-ए-दोस्त में कुछ क़ैद-ए-सुब्ह-ओ-शाम नहीं ये कैफ़-ए-इश्क़ है वक़्ती सुरूर-ए-जाम नहीं तिरी तरह मिरा नासेह ख़याल ख़ाम नहीं निगाह-ए-क़हर का मरकज़ था कौन महफ़िल में हुज़ूर कहते हैं तेरा कोई मक़ाम नहीं ये फ़ल्सफ़ा ये सियासत ये हिकमत-ओ-दानिश कहाँ कहाँ मिरी ख़ातिर कमंद-ओ-दाम नहीं वो दर्स देते हैं अख़्लाक़ का अब ऐ 'आसी' सलाम कीजिए जिन को तो लें सलाम नहीं