इसी में ज़ात का इदराक इर्तिक़ा का शुऊ'र मिरी नज़र में मोहब्बत है इंतिहा का शुऊ'र मिरे वजूद से पहले कहाँ था ज़िक्र-ए-जमाल कहाँ थी इश्क़ सी लज़्ज़त कहाँ वफ़ा का शुऊ'र झुकी जबीं तो अक़ीदत से आश्नाई हुई उठाए हाथ तो इन में पड़ा दुआ का शुऊ'र वो सर दिखाए मुझे जिस में ख़ुद-सरी है अभी वो हाथ ऊँचा करे जिस को है अना का शुऊ'र मैं शोर-ओ-शर से ज़रा फ़ासला बढ़ाउँगा समाअतों में उतर आएगा सदा का शुऊ'र हमारा आइने पर इंहिसार बढ़ने लगा बदन में जब से खुला जिस्म-ए-मावरा का शुऊ'र ये बात जानना लाज़िम है हर किसी के लिए निज़ाम-ए-अद्ल से मरबूत है ख़ुदा का शुऊ'र कहाँ से ज़ेहन में आया ख़याल-ए-हिर्स-ओ-हवस कहाँ से जिस्म ने पाया है आश्ना का शुऊ'र ये साँस चलनी थी जलते चराग़ बुझने थे हमें नहीं भी अगर होता इस हवा का शुऊ'र ये हर्फ़-ओ-लफ़्ज़ से निस्बत ये ज़ौक़-ए-शेर-ओ-सुख़न ये ग़ौरो-ओ-फ़िक्र है 'शाहिद' में इब्तिदा का शुऊ'र