मोहलत न दे ज़रा भी मुझे मेरी जान खींच मैं आरज़ू तमाम हूँ अपनी कमान खींच इक महशर-ए-जमाल उठा तोड़ दे जुमूद तीर-ए-नज़र ज़मीन से ता-आसमान खींच मैं आ रहा हूँ बरसर-ए-मौज-ए-हवा-ए-गुल तू लाख अपने गिर्द हिसार-ए-मकान खींच लम्हात-ए-बे-अमाँ भी ग़नीमत हैं पास आ मौज़ू-ए-दीगराँ भी न अब दरमियान खींच वो लब-चशीदनी हैं वो दामन-कशीदनी आए न गर यक़ीं तो पए-इम्तिहान खींच 'सहबा' ये शहर-ए-ज़ीस्त सदाओं का शहर है यानी तनाब-ए-हसरत-ए-हुस्न-ए-बयान खींच