मुँह कहाँ ये कि कहूँ जाइए और सो रहिए ख़ूब गर नींद है तो आइए और सो रहिए तकिया ज़ानू का मिरे कीजिए बे-ख़ौफ़-ओ-ख़तर आप तशरीफ़ इधर लाइए और सो रहिए आज की चाँदनी वो है कि किसी शोख़ के साथ खोल आग़ोश लिपट जाइए और सो रहिए यूँ तो हरगिज़ नहीं आने की तुम्हें नींद मगर मुझ से क़िस्सा मिरा कहवाइए और सो रहिए ग़म रहा था मिरी बातों का तुम्हें किस किस दिन मुँह मिरा आप न खुलवाइए और सो रहिए गर रहें हम भी कहीं पाएँती अब जाएँ कहाँ आप इतना हमें फ़रमाइए और सो रहिए बख़्त जागे हैं शब-ए-माह में जो यार है पास चाँदनी तख़्त पे बिछवाइए और सो रहिए उस अदा का हूँ मैं दीवाना कि अंगड़ाई ले मुझ से कहता है कहीं जाइए और सो रहिए डर ख़ुदा का है नहीं और सनम को ले कर एक जा पर तुझे दिखलाइए और सो रहिए तपिश-ए-इश्क़ की गरमी से जले जाते हैं छाँव ठंडी कहीं टुक पाइए और सो रहिए ये बिला फ़िक्र से कुछ नेद हुई है 'हसन' जी में आता है कि कुछ खाइए और सो रहिए