मुँह-बंद हसरतों को सुख़न-आश्ना करो तोड़ो सुकूत साज़-ए-ग़ज़ल इब्तिदा करो लाओ कहीं से संग-ए-मलामत ही क्यूँ न हो यारो शिकस्त-ए-शीशा-ए-दिल की दुआ करो मासूम लग़्ज़िशों की बहुत दाद मिल चुकी अब आश्ना-ए-ग़ैर के ताने सुना करो हारे हुए ख़ुलूस पे शर्मिंदगी है क्यूँ किस ने नहीं कहा था कि दिल का किया करो नादान हो जहाँ का चलन देखते नहीं रस्म-ए-जफ़ा को आम ब-नाम-ए-वफ़ा करो फिर कोई जाँ-नवाज़ बहाना तराश लो फिर कोई दिल-फ़रेब अछूती ख़ता करो मिल जाएगा 'जमील' कोई ज़ख़्म कोई फूल आओ न तुम भी कूचा-ए-दिल में सदा करो