मुँह-ज़ोर आरज़ूओं की बे-मेहरियाँ न पूछ बेगाना हो रही हैं ये ला कर कहाँ न पूछ फ़ेहरिस्त मुहसिनोंं की निहायत तवील है मुझ से मिरी तबाहियों की दास्ताँ न पूछ मुझ को पनाह दी न तिरे ग़म ने भी कभी मैं दे रहा हूँ कितने ग़मों को अमाँ न पूछ हर ज़ख़्म चंद ज़ख़्मों की करता है परवरिश कैसे सदा-बहार है ये गुल्सिताँ न पूछ दश्त-ए-वफ़ा की वुसअ'तों को पा सका है कौन गुम किस क़दर हुए हैं यहाँ कारवाँ न पूछ वाबस्ता मोड़ मोड़ से हैं कितने हादसात ये क़त्ल-गाह है कि दयार-ए-बुताँ न पूछ