मुँह-ज़ोर हैं मग़रूर हैं पुर-कार नहीं हैं हम लोग अभी साहब-ए-किरदार नहीं हैं जब आप ही उल्फ़त में वफ़ादार नहीं हैं फिर हम से गिला क्यूँ कि तलबगार नहीं हैं हम साक़ी-ए-मह-वश हैं गुनहगार-ए-अक़ीदत हम पीने-पिलाने के गुनहगार नहीं हैं बे-मेहरी-ओ-बे-गाँगी-ओ-जोर-ओ-तग़ाफ़ुल हम ऐसी मोहब्बत के परस्तार नहीं हैं क्या अहल-ए-चमन-ज़ार के अज्साम में है जान क्या अहल-ए-चमन जान से बेज़ार नहीं हैं मुख़्तार भी मालिक भी हैं ग़ैरों के लिए आप अपनों के लिए मालिक-ओ-मुख़्तार नहीं हैं मत पूछिए मयख़ाने का दस्तूर 'हज़ीं' से ज़ी-होश ही मयख़ाने में होशियार नहीं हैं