मुबारक हो ये तर्ज़-ए-बे-रुख़ी ये हौसला तुझ को मुझे तू भूल जाए इतनी ख़ुशियाँ दे ख़ुदा तुझ को हज़ारों अक्स लहराते हैं सत्ह-ए-आब-दीदा पर किसे नाबूद कर देना है तूफ़ान-ए-बला तुझ को कहीं ख़ुद्दारियाँ तन्हाइयों से झेंप जाती हैं मिरे कुछ शे'र पढ़ लेना मज़ा आ जाएगा तुझ को वक़ार-ए-शख़्सियत में फ़र्क़ तो पड़ता नहीं लेकिन असर-अंदाज़ होता है हमारा देखना तुझ को ये क्या अंदाज़ है 'अशहर' शरीफ़ों से तख़ातुब का शरफ़ बख़्शा न जाएगा किसी तक़रीब का तुझ को