मुब्तला-ए-हिरास लगती है ज़िंदगी बद-हवास लगती है ज़िंदगी जोश से भरी थी कभी अब तो ख़ाली गिलास लगती है कैसा गुज़रा है हादिसा जाने सारी बस्ती उदास लगती है किस क़दर बद-नुमा है ये दुनिया किस क़दर ख़ुश-लिबास लगती है भूल जाता है तिश्नगी सब की जब समुंदर को प्यास लगती है गर्म नज़रों से देखने वाले आग सी दिल के पास लगती है जेब ख़ाली हो जब 'कमाल-अनवर' दस की गिनती पचास लगती है