मुद्दतों से कोई पैग़ाम नहीं आता है जज़्बा-ए-दिल भी मिरे काम नहीं आता है हाए अंदाज़-ए-तग़ाफ़ुल कि दम-ए-ज़िक्र-ए-वफ़ा याद उन को भी मिरा नाम नहीं आता है उफ़ वो मासूम ओ हया-रेज़ निगाहें जिन पर क़त्ल के बाद भी इल्ज़ाम नहीं आता है काम कुछ मेरी तबाही के सिवा दुनिया में तुझ को ऐ गर्दिश-ए-अय्याम नहीं आता है मेहरबाँ दीदा-ए-साक़ी को उसी पर देखा जिस को तर्ज़-ए-तलब-ए-जाम नहीं आता है अब है ये आलम-ए-मायूस-ए-मोहब्बत 'अनवर' उन के जल्वों से भी आराम नहीं आता है