मुफ़्त में तोड़ के रख दी मिरी तौबा तू ने काम पत्थर का किया शीशा-ए-सहबा तू ने मैं ने की जामा-दरी और उन्हें शिकवा है कर दिया चाक मिरे हुस्न का पर्दा तू ने किस क़दर होश-रुबा है निगह-ए-मस्त तिरी उस को देखा न सँभलते जिसे देखा तू ने तू निगाहों में तसव्वुर में जिगर में दिल में फ़ाएदा क्या जो किया आँख से पर्दा तू ने हम न कहते थे नहीं ताक़त-ए-दीदार 'जलील' क्या हुआ जल्वा-गह-ए-नाज़ में देखा तू ने