मुहाल था कि ये तूफ़ान-ए-रंग-ओ-बू आए अगर बहार तिरा पैरहन न छू आए बयान-ए-दर्द और इस अंजुमन में दीवानो कहाँ डुबो के मोहब्बत की आबरू आए ये उँगलियाँ कि अब इक जाम को तरसती हैं कभी उन्हीं से सितारों की नब्ज़ छू आए न इस क़दर भी तकल्लुफ़ से काम लो कि शराब जो आए भी तो नज़र ख़ून-ए-आरज़ू आए हमारा पी के बहकना भी काम का निकला कि मय-कदे में नए साग़र-ओ-सुबू आए वो आइने थे जो हैरान हो गए 'ख़ावर' जमाल-ए-दोस्त हमारे तू रू-ब-रू आए