मुहीत-ए-रहमत है जोश-अफ़ज़ा हुई है अब्र-ए-सख़ा की आमद ख़ुदा की हर चीज़ कह रही है कि अब है नूर-ए-ख़ुदा की आमद फ़लक को है आरज़ू कि झुक कर मैं अपने तारे करूँ निछावर हुई है मक्का की सर-ज़मीं पे ये आज किस मह-लक़ा की आमद हर इक मुहिब पर ये फ़ज़्ल-ए-रब है असर को नालों की ख़ुद तलब है मगर उस अल्ताफ़ का सबब है हबीब-ए-रब्ब-उल-उला की आमद 'हिजाब' पैहम ये कह रहा है गुनाहगारों ने जोश-ए-रहमत मुबारक ऐ आसियो मुबारक शफ़ी-ए-रोज़-ए-जज़ा की आमद