मुझ को ज़िंदा रहने का इक जज़्बा आ के मार गया मैं अपनी साँसों से आख़िर लड़ते लड़ते हार गया अपनी नींदें अपनी रातें अपनी आँखें अपने ख़्वाब तुम को जीतने की ख़ातिर में अपना सब कुछ हार गया जैसी चीज़ें मुझ में थीं सब वैसी दुनिया में भी थीं अपने अंदर से मैं बाहर आख़िर को बे-कार गया इश्क़ के इस सौदे में मुझ को इतना भी मालूम नहीं कितनी तेरी नफ़रत आई कितना मेरा प्यार गया याद रखेंगे दुनिया वाले मेरी इस क़ुर्बानी को पहले जुनूँ को आम किया और फिर मैं सू-ए-दार गया